Friday, April 13, 2007

ऐ लड़कियों...

ऐ लड़कियों....
फतवा जारी होगा अब तुम्हारी सूरत पर, सीरत पर
हर कदम उठाने होगें तुम्हें पोर की गिनतियों पर
बोलने से पहले सोचना होगा
सोचने से पहले लेनी होगी इजाजत
समाज के ठेकेदारों से
सड़क के पहरेदारों से
क्योंकि वो चाहते हैं
तुम रहो घूंघट में
तुम रहो बुडके में
तुम काम करो सिर्फ पर्दे के पीछे
तुम काम करो करो सिर्फ बिस्तर के नीचे।

..पुरकैफ

1 comment:

Neeraj Rajput said...

राजेश तुम्हारे इस ब्लॉग के बारे में बहुत पहले पता चला था, लेकिन कभी गौर नही किया। आज तुम्हारी इस रचना को पढकर लगा कि वाकई तुम रचानात्मक व्यक्ति हो। वाकई तुम्हारी ये रचना उस पुरष प्रधान समाज के मुंह पर तमाचा है जो सिर्फ और सिर्फ लडकियो और महिलाओ को अपने पैर की जूती और बिस्तर पर एक चादर के समान मानते है--जब मर्जी हुआ ओढ लिया,जब मर्जी किया अपने नीचे कर लिया।
गुड़ मै आगे भी तुम्हारी ऐसी ही रचनाओ को पढने के लिये बेताब बैठा हूं।
नीरज राजपूत