नींद कम नही होती, आदत से ज्यादा सोने के बाद भी।
सालों बीत गये, न तो सूरज उगते देखा और न ही डूबते हुए
अक्सर तस्वीरें देखता हूं, सन राइज...सन सेट।
मेरे घर के दरवाजें रातभर खुले रहते हैं
बिना किसी डर के मेरे इंतजार में।
जब घर के लोग सो जा जाते हैं तब मैं दबे पांव घर में घुसता हूं
जब घर के लोग अपने कामों पर चले जाते हैं तब मैं सुबह की चाय पीता हूं
जिंदगी का हर पल, कमबख्त हो गया है।
हर पल हमारी नजर दुनिया की तमाम खबरों पर होती है
एक भी खबर छूटने पर नौकरी तक जा सकती है
लेकिन मेरे पिता जी बीमार हैं ये बात मुझे चार दिन बाद पता चली
कमबख्त मैं, कमबख्त मेरी जिंदगी।
2 comments:
क्या बात है
एकदम इलाहाबादी सुर
अच्छा है
और... कमबख़्त आज का दौर!
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