Tuesday, October 2, 2007

मुर्दे की ख्वाहिश

शहर की भीड़ भाड़ वाली सड़क पर
जा रही थी ठेले पर एक लाश
साथ में चल रहा था सैकड़ों लोंगों का हुजूम
राम नाम सत्य है के लग रहे थे नारे
सफेद कपड़े में सजे धजे थे सारे लोग
फूलों से लदी लाश और ठेला
बढ़ता जा रहा था.
सड़क पर चलने वाला हर शख्स
जो भी जनाजे नुमा ठेले के पास से गुजरा
उसका सिर सजदे के लिए जरूर झुका
मैं भी उस ठेले के पास से गुजरा
मैंने भी सजदा किया
और अचानक एक सवाल मेरे जेहन में आया
कि इस जनाजे के साथ सैकड़ों लोंग चल रहे हैं
लेकिन चार ऐसे कंधे नही हैं जो मुर्दे को कब्र तक ले जा सके
क्योंकि मरने के बाद हर मुर्दे की यही ख्वाहिश होती है चार कंधों की।

2 comments:

Udan Tashtari said...

बदलती दुनिया के बदलते रंग. कुछ समय में कोरियर ले जायेगा और लोग सीधे शमशान में पहुँचेगे विदा करने.

पारुल "पुखराज" said...

aisii hi ek laash shayaad laavaaris thii..kanpur ganga bridge per..dekhii thii mainey..paanv borey se latak rahey they..rickshaw chaalak nashey me dhhut....jise yaad karke maheeno raat me dar jaati thii.....