Thursday, July 3, 2008

जिया जले.....

फोन पर बजती कई बार पूरी पूरी रिंग
फोन करने पर सुविज्ड ऑफ का संकेत
मोबाइल पर मैसेज का अनसेंड वाली खबर
जानकर, सुनकर, सचमुच.....
जिया जले.......।

रेस्टोंरेंट में एक कोने में
चेयर पर अकेले बैठे किसी का इंतजार
शहर वाले पार्क में पेड़ की छांव तले
बार बार कलाई पर बंधी घड़ी को देखना
महसूस कर, सचमुच..........
जिया जले.........।

परदेश से महीनों बाद पिया का घर आने का संदेश
साथ साथ कंगना, चूड़ी़, बिंदी पाने की खुशी
पिया के बांहो का प्यार का एहसास, सब खत्म
एक ही छड़ में, एक बैरी फोन कॉल में
पिया के न आने का संदेश सुनकर
गोरी का, सचमुच.......
जिया जले.......।

4 comments:

Udan Tashtari said...

वाह जी..सचमुच जिया जले ..इतना अच्छा पढ़कर.

Sadiya said...

wah! wah! kya kavita rachi hai apne... such mooh "jia jale"...Rajesh sir...aap aisehi kavita likte rahiye.......

गवाह said...

jiya jale ke baad bas yahi dil aaj shayar hai gam aaj nagma hai sab aaj ghajal hai gairo ko shero ko sunane wale iss taraf bhi jara karam....wah whahahahahaa

गवाह said...

jiya jale ke baad bas yahi dil aaj shayar hai gam aaj nagma hai sab aaj ghajal hai gairo ko shero ko sunane wale iss taraf bhi jara karam....wah whahahahahaa