धड़कनों के लिए गीत गाता हूं मैं
धड़कनें गीत बन जाएं तो क्या करुं।
हैं जवानी के दिन दिल में तूफान है
गीत खुद गुनगुनाएं तो मैं क्या करुं।
उनकी भी ख्वाहिशें अब जवां हो रही
हुस्न खुद अब बुलाये तो मैं क्या करुं।
मन की अपनी उड़ानें नहीं थम रही
कोई आंचल उड़ाये तो मैं क्या करुं।
हर कदम पर मेरे हुस्न की आग है
खुद ब खुद पांव जल जाए तो क्या करुं।
... पुरकैफ
1 comment:
राजेश जी,आप की यह रचना काफि भावपूर्ण है।लिखते रहें।
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