झोपड़ी में झोपड़ी बस जोड़ता वो मर गया,
झोपड़ी में खोपड़ी बस फोड़ता वो मर गया।
सत्य का था वो पुजारी और अहिंसा धर्म था,
प्यास कुछ ऐसी लगी जल खोजता वो मर गया।
घर में चूल्हे जल रहे थे पर अलग थे लोग सब,
क्यों अलग हैं लोग सब ये सोचता वो मर गया।
एक बगिया भी लगाई थे बड़े उत्साह से,
एक महकते फूल को बस खोजता वो मर गया।
घर में उसने खिड़कियां भी बनाई थी मगर,
कुछ घुटन ऐसी हुई सर नोचता वो मर गया।
जब मरा तो लोग कहते थे बड़ा वो नेक था,
कुछ थे अपने कह रहे थे बोझ था वो मर गया।
पुरक़ैफ़
2 comments:
जनाब, बहुत अच्छा लिख रहे हैं आप
अब तक कहां थे? आप ने पहले न आकर हमारे साथ अन्याय किया है.
जब मरा तो लोग कहते थे बड़ा वो नेक था,
कुछ थे अपने कह रहे थे बोझ था वो मर गया।
कुछ थे अपने कह रहे थे बोझ था वो मर गया।
जनाब,आप नेय तौ आज कल क सच बोल दिया, तरीफ़ जिती करु कम हय
शुकरिया
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