Thursday, May 10, 2007

घुटन....

देर रात थके हारे पांव
जब फैलते हैं बिस्तर पर तो
घुटन होती है....

भोर होने तक
जब जागती रहती हैं आंखे
इस सोच में कि...
कल क्या होगा तो
घुटन होती है....

अकेले दिन बिताने के बाद
रात के इंतजार में
बिस्तर को ताकती
एक सुकुमार देह
सो जाती है
एक छुअन बगैर तो
घुटन होती है...

अनगढ़े से शब्द
जब सुनायी पड़ते हैं
और आंखो के सामने
बनता है एक बिम्ब
जैसे एक अतुकान्त कविता तो
घुटन होती है...

आइसक्रीम की एक डंडी
जब जमीन से उठाकर
चाटता है एक बच्चा
जिसे एक बच्चे ने फेंका था
अपने डैडी के कहने पर तो
घुटन होती है...

पुरक़ैफ़

3 comments:

Sajeev said...

पुरकैफ़ ... दिल छू लिया तुमने....
जिन्दगी यूं हुई बसर तनहा
काफिला साथ और सफ़र तनहा

Manish Kumar said...

बहुत सुंदर भावव्यंजना ! लिखते रहें ।

Rajesh Tripathi said...
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