Friday, January 4, 2008

नन्ही आम्रपाली

उसे मैंने देखा है....सड़क की फुटपाथ वाली रोड पर
रात के बारह बजे के बाद मंधिम रोशनी में खड़ी
पहली नजर में लगा कोई मासूम बच्ची भटक गई है घर का रास्ता
मदद के लिए ही तो मैंने रोकी थी अपनी गाड़ी
लेकिन मैं सन्न रह गया था जब वो मेरे पास आई और जुबान खोली
500 रूपये, एक घंटे का........सकते में आ गया था मैं
कुछ पल पहले मासूम सी दिखने वाली वो नन्ही आम्रपाली अब जवान लग रही थी
उसके नखरे भी जवान लग रहे थे
मेरी कुछ समझ में नही आ रहा था
बस मैंने अचानक गाड़ी आगे बढ़ा दी
और एक नन्ही सी आवाज सुनाई पड़ी
भड़ुओं को करना धरना कुछ नही चले आते हैं.....।

2 comments:

ghughutibasuti said...

ओह !
घुघूती बासूती

Ashok Kaushik said...

महानगरों में रात की जिंदगी का एक चेहरा ये भी है. कटु सत्य.