Tuesday, June 24, 2008

गली के मोड़ पर....

रोज मिलती है मुझे वो गली के मोड़ पर....

भीगी भीगी सी लगी.... बारिशों के साथ वो
सहमी सहमी सी लगी....दिन हो चाहे रात हो
सुनती रहती सिर्फ है वो....चाहे कोई बात हो
प्यासी है या प्यास उसकी बुझ चुकी...
क्या पता...?
रोज मिलती है मुझे वो गली के मोड़ पर....

दम नही है बाजुओं में..... बाह ढीली सी लगी
बोल उसके बंद से हैं........सांस ढीली सी लगी
कहना भी कुछ चाहती है...आह गीली सी लगी
और ये क्या उम्र उसकी
सिर्फ सोलह साल है?
रोज मिलती है मुझे वो गली की मोड़ पर।

कुछ लपेटे... कुछ बटोरे चुप है वो
बोलने की आस में गुमसुम है वो
देखने में वो पराई सी लगी
जिंदगी उसकी लड़ाई सी लगी
कैसी लड़ाई.......?
रोज मिलती है मुझे वो गली के मोड़ पर....



2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा भाव...

Advocate Rashmi saurana said...

bhut sundar bhav sundar rachana. badhai ho.