Saturday, June 28, 2008

तुम गजल बन गई....

तुम गजल बन गई….

मीठी मीठी तन्हाईं में
घर की अपनी अंगनाई में
सपनों की इस पुरवाई में
जब तुम आई
गजल बन गई

रेत के कोरे कागज पर
प्यार उकेरें पांव तेरे
थकी दोपहरी
भीगी रात में
जब तुम आई
गजल बन गई।

बोल पड़े जब होंठ तुम्हारे
सोन चिरईयां जैसी तुम
खुली तेरी चब दो दो चोटी
घिरे बादलों जैसी तुम
बारिश बन कर जब तुम आई
गजल बन गई।

7 comments:

Sandeep Singh said...

मीठी मीठी तन्हाईं में
घर की अपनी अंगनाई में
सपनों की इस पुरवाई में
जब तुम आई.....

वाह, क्या खूब लिखा है लेकिन जनाब तन्हाई में उसके आने के बाद गज़ल तो बन गई पर अब शायद आप भी फिर से तन्हा नहीं होना चाहेंगे...तो आगे क्या गज़ल के बजाए कहानी पढ़ने को तैयार रहूं। :) :)

Advocate Rashmi saurana said...

रेत के कोरे कागज पर
प्यार उकेरें पांव तेरे
थकी दोपहरी
भीगी रात में
जब तुम आई
गजल बन गई।
bhut sundar.ati uttam. likhate rhe.

डॉ .अनुराग said...

रेत के कोरे कागज पर
प्यार उकेरें पांव तेरे
थकी दोपहरी
भीगी रात में
जब तुम आई
गजल बन गई।
kya bat hai ...bahut achhe .likhte rahe..

Udan Tashtari said...

बहुत खूब महाराज. बेहतरीन रचा जा है. बधाई.

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर!
घुघूती बासूती

गवाह said...

baklol se gajhal ka safar bada jald hi tay ho gaya hai sir wah wah irshad.......

Rajnish tripathi said...

vah chacha ji aap bhi gjab ka likhte hai.aap ne midi tanhai aur apne khar aur gao ki agnai aur garmi ke mausam me jo purwaai hwa ki yaad dilai hai usi tarah jab aam ka baora lagta hai to uski khusboo ke liye maan aur dil dono tadp udta hai bas aap isi tarah likhte rahihe aur gao aur desh ki yaad dilate rhiye.