Saturday, May 12, 2007

गवाही दे.....

सच लिखेगा, सच कहेगा
दे गवाही तू...

राम की सीता लिखेगा
कृष्ण की राधा लिखेगा
कोठे की गाथा लिखेगा
दे गवाही तू...

हार भी अपनी लिखेगा
जीत भी अपनी लिखेगा
जब गिरा है, जब उठा है
सब लिखेगा
दे गवाही तू....

बचपनें का प्यार लिख तू
प्यार का इजहार लिख तू
प्यार में टकरार लिख तू
प्यार में धोखा दिया है
प्यार ने धोखा दिया है
क्यों दिया है
दे गवाही तू...

2 comments:

बोधिसत्व said...

अच्छा है । जम कर लिखते रहें ।

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

मजा आया भाई ,
आप कवि भी हैं,पता न था. अब तो ब्लाग पे आना जाना लगा रहेगा.
गिरीन्द्र नाथ झा