Tuesday, October 30, 2007

एक पैर का नाच

शहर के बीच चौराहे की फुटपाथ पर जमा थी भीड़
चल रहा था एक पैर का नाच
लोग टकटकी लगाये देख रहे थे उस सोलह साल की लड़की को
जो फिल्मी धुन पर दिखा रही थी एक पैर का नाच
नाच का ये तमाशा दिखा रही लड़की बहुत सुन्दर थी
किसी गांव की गोरी की तरह
घुंघरुओं की छनक के साथ धड़क रहा था वहां पर खड़े कितने नौजवानों का दिल
जिनकी नजर पैरों पर कम....उसके गदराये जिस्म पर टिकी थी
एक पैर के इस नाच पर खूब वाहवाही भी मिल रही थी और तालियां भी बज रही थी
बीच बीच में आवाज भी आ रही थी.. जियो छम्मक छल्लो...
पूरे एक घंटे बाद नाच बंद हो गया
कितने लोगों के हाथ अपने अपने जेब में गये
जिनकी जेब से सिक्के निकले उन्होंने जमीन पर बिछे कपड़े पर उछाल दिए
जिनकी जेब से नोट निकली वो कुछ सोचने के बाद आगे बढ़ गये।
सब लोगों के जाने तक मैं वहां खड़ा रहा
मैंने उस लड़की से पूछा तुम्हारा पैर कैसे कट गया
उस लड़की की आंखे नम हो गई थी
उसने मेरी तरफ देखा
कुछ देर बाद बोली
एक ट्रेन एक्सीडेंट में मेरे मां बाप मर गये है और मेरा पैर कट गया था
वो रोने लगी थी....ढाढस के दो शब्द मैंने भी बोले थे
तीन दिन बाद मैंने शहर के दूसरे चौराहे पर भी एक पैर का नाच होते देखा था।

Tuesday, October 2, 2007

मुर्दे की ख्वाहिश

शहर की भीड़ भाड़ वाली सड़क पर
जा रही थी ठेले पर एक लाश
साथ में चल रहा था सैकड़ों लोंगों का हुजूम
राम नाम सत्य है के लग रहे थे नारे
सफेद कपड़े में सजे धजे थे सारे लोग
फूलों से लदी लाश और ठेला
बढ़ता जा रहा था.
सड़क पर चलने वाला हर शख्स
जो भी जनाजे नुमा ठेले के पास से गुजरा
उसका सिर सजदे के लिए जरूर झुका
मैं भी उस ठेले के पास से गुजरा
मैंने भी सजदा किया
और अचानक एक सवाल मेरे जेहन में आया
कि इस जनाजे के साथ सैकड़ों लोंग चल रहे हैं
लेकिन चार ऐसे कंधे नही हैं जो मुर्दे को कब्र तक ले जा सके
क्योंकि मरने के बाद हर मुर्दे की यही ख्वाहिश होती है चार कंधों की।

Monday, September 17, 2007

बोल- बचन

हर सवाल का जवाब होता है, बोल-बचन के पास
और हर जवाब गलत होता है, बोल-बचन का
अगर आप यकीन कर ले उनकी बात पर,
तो आपकी नईंया कभी कभी भी पार नही हो सकती।
अभी कल की बात है
मैंने बोल-बचन से बताया था कि मेरे एक खास दोस्त की बीवी अस्पताल में भर्ती है
सीरियस है, उसे कल पांच बॉटल खून की जरुरत है, कुछ इंतजाम करो
बोल बचन ने तीन बॉटल खून दिलाने का वादा कर दिया था,
मैंने भी अपने दोस्त को बेफिक्र कर दिया था।
दूसरे दिन जब बोल बचन को फोन पे फोन किया तो शाम तक उनका फोन नही मिला
शाम को जब मिला तो मैंने खून वाली बात की, तो बोल बचन ने कहां अरे मैं तो भूल ही गया था
उन्होंने कहां मैं अभी कुछ इंतजाम कर रहा हूं.....
मैंने उन्हें बताया रहने दो पेंसेंट मर चुका है,खून न मिलने कि वजह से।
उस समय बोल बचन थोड़ा गंभीर हो गये थे।
हर ऑफिस में कई बोल बचन होते हैं
जिनके भरोसे पर ही ऑफिस में कभी कभी बवाल होता रहता है
बोल बचन के भरोसे कई लोग अपने बॉस को तमाम आश्वासन दे देते हैं
और बोल बचन अपने वसूल पर कायम रहते हैं
काम समय से नही होता और फिर डांट मिलना वाजिब है।
बोलो बोल- बचन की जय...........

Tuesday, September 11, 2007

कमबख्त मेरी जिंदगी

नींद कम नही होती, आदत से ज्यादा सोने के बाद भी।
सालों बीत गये, न तो सूरज उगते देखा और न ही डूबते हुए
अक्सर तस्वीरें देखता हूं, सन राइज...सन सेट।
मेरे घर के दरवाजें रातभर खुले रहते हैं
बिना किसी डर के मेरे इंतजार में।
जब घर के लोग सो जा जाते हैं तब मैं दबे पांव घर में घुसता हूं
जब घर के लोग अपने कामों पर चले जाते हैं तब मैं सुबह की चाय पीता हूं
जिंदगी का हर पल, कमबख्त हो गया है।
हर पल हमारी नजर दुनिया की तमाम खबरों पर होती है
एक भी खबर छूटने पर नौकरी तक जा सकती है
लेकिन मेरे पिता जी बीमार हैं ये बात मुझे चार दिन बाद पता चली
कमबख्त मैं, कमबख्त मेरी जिंदगी।

Monday, August 27, 2007

टीआरपी टेम्पल

खबर फैल चुकी है मीडिया के गलियारों में
कि एक टीआरपी का मंदिर है,जहां सजदा करने से
किसी भी प्रोग्राम की टीआरपी अच्छी आती है
जिस टीआरपी के लिए चैनल के बादशाह
कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं.
किसी भी हद तक गुजरने और गिरने के लिए तैयार रहते हैं
अगर वही टीआरपी सिर झुकाने से आ जाएं तो खबर अच्छी है
खबरियां रिपोर्टर इस मंदिर की तलाश में अपना पूरा नेटवर्क इस्तेमाल कर रहे हैं
चैनल के बॉस इस मंदिर की तलाश के लिए अपने रिपोर्टर की रोज क्लास लेते हैं कि
अभी तक वो मंदिर मिला क्यों नहीं, रोज इधर उधर के मंदिर के बारे में स्टोरी ले के आ जाते हो
सारे रिपोर्टर परेशान हैं कि क्या करें, कहां से लेके आएं टीआरपी मंदिर।
खैर मुझे तो पता है, लेकिन मंदिर के पुजारी ने पता बतानें के लिए मना किया है।

Wednesday, August 22, 2007

गाली दो वाहवाही लो...

कल मैंने कवियों को गाली लिखा बहुत वाहवाही मिली
एक लेख में मैंने कई साहित्यकारों को खरी खोटी सुनाई बहुत वाहवाही मिली
इश्कबाज चिट्ठाकारों की भी कलई खोली थी खूब वाहवाही मिली
लेकिन कई बार मैंने देश के बारे में, समाज के बारे में सुधार की बात लिखी किसी ने नहीं पढ़ा
लगता है लेखक और साहित्यकार बंधुओं को गाली देना ही उनकी तारीफ समझी जाती है
भाई गाली देने और लेने से टीआरपी तो बढ़ती ही है। लेते रहो....देते भी रहो।

Tuesday, August 21, 2007

एक पैर का नाच

शहर के बीच चौराहे की फुटपाथ पर जमा थी भीड़
चल रहा था एक पैर का नाच
लोग टकटकी लगाये देख रहे थे उस सोलह साल की लड़की को
जो फिल्मी धुन पर दिखा रही थी एक पैर का नाच
नाच का ये तमाशा दिखा रही लड़की बहुत सुन्दर थी
किसी गांव की गोरी की तरह
घुंघरुओं की छनक के साथ धड़क रहा था वहां पर खड़े कितने नौजवानों का दिल
जिनकी नजर पैरों पर कम....उसके गदराये जिस्म पर टिकी थी
एक पैर के इस नाच पर खूब वाहवाही भी मिल रही थी और तालियां भी बज रही थी
बीच बीच में आवाज भी आ रही थी.. जियो छम्मक छल्लो...
पूरे एक घंटे बाद नाच बंद हो गया
कितने लोगों के हाथ अपने अपने जेब में गये
जिनकी जेब से सिक्के निकले उन्होंने जमीन पर बिछे कपड़े पर उछाल दिए
जिनकी जेब से नोट निकली वो कुछ सोचने के बाद आगे बढ़ गये।
सब लोगों के जाने तक मैं वहां खड़ा रहा
मैंने उस लड़की से पूछा तुम्हारा पैर कैसे कट गया
उस लड़की की आंखे नम हो गई थी
उसने मेरी तरफ देखा
कुछ देर बाद बोली
एक ट्रेन एक्सीडेंट में मेरे मां बाप मर गये है और मेरा पैर कट गया था
वो रोने लगी थी....ढाढस के दो शब्द मैंने भी बोले थे
तीन दिन बाद मैंने शहर के दूसरे चौराहे पर भी एक पैर का नाच होते देखा था।

Monday, August 20, 2007

रड़ुआ रिपोर्टर...

इस प्रजाति की खास बातें....
रड़ुआ रिपोर्टर 8 घंटे की ड्यूटी को 12 घंटे तक करता है
क्योंकि उसे घर जाने की चिंता कम होती है।
और अपना ज्यादा से ज्यादा समय ऑफिस को देना चाहता है
ऐसे में किसी भी न्यूज सेंटर का बॉस उससे खुश रहता है।
मीडिया जगत में ऐसे लोगों का परिवार बढ़ता जा रहा है
बॉस के घर पर होने होने वाली कॉकटेल पार्टी में
ऐसे ही लोगों को बुलाया जाता है जो रणुआ हैं।
और जब चढ़ता है शुरुर तो सब एक दूसरे की खोलते हैं पोल
और बॉस खुश हो जाते हैं इन रड़ुआ रिपोर्टरों की बयान बाजी से
मसाला मिल जाता है.....दो चार दिन तक किसी न किसी की.....।

ऑफिस में आने वाली हर नयी लड़की रिपोर्टर
जज्बा पैदा करती है रड़ुआ रिपोर्टर के अंदर
होड़ लगती है उसके साथ चाय पीने के लिए
कोई हार जाता है, कोई जीत जाता है
लेकिन जो जीता वही सिंकदर
लोगों की नाक में दम करने वाले ये रिपोर्टर
इसी ....के चौखट पर आकर अक्सर खुद की खबर बना लेते हैं।

रड़ुआ रिपोर्टर दो तरह के होते हैं
एक जूनियर एक सीनियर
सीनियर अक्सर अपने जूनियर की खबर रखता है
वह नौकरी के अलावा कई मामले में उसे अपना प्रतिद्वंदी मानता है
आखिर वो ज्यादा जवान होता है भाई......
और अक्सर इसी के चक्कर में जूनियर की बेवजह लगती रहती है।


नोट-
1-रड़ुआ रिपोर्टर आजकल समाज में बदनाम होते जा रहे हैं......लोग उन्हें बेहद आवारा समझने लगे हैं. कोई अपनी बेटी उनके हवाले नही करना चाहता। इस लिए रिपोर्टर के आगे रड़ुआ शब्द हटने की उम्मीदे कम होती जा रही हैं।

2-ये सब मुझे एक रड़ुआ रिपोर्टर दोस्त ने लिखने के लिए मजबूर किया है जिसके सिर पर चांद बन गया है।

Thursday, August 16, 2007

खलबली

सत्य के शब्दों का सेंसेक्स जब बढ़ता है तो लोगों में खलबली पैदा हो जाती है।
खलबली पैदा हो जाती है उन रसूखदार लोगों में जो कभी गये थे वेश्या के कोठे पर
उन्हें याद आने लगती हैं वो गलियां जहां डरते डरते रखा था उन्होंने कदम।
सत्ता के गलियारों से लेकर, खबरों के बाजार में एक डर पैदा हो जाता है
फोन पर की गईं वो सारी बातें याद आती हैं जो किसी कॉलगर्ल से रात रात भर हुई थी।

डर उन्हें भी लगता है जिन्होंने नोट की गड्डियों के बदले
झोपड़ों की उस बस्ती पर बुलडोजर चलवाया था
डर उन्हें भी लगता, जिन्होंने धमाकों के साथ शहर में
मांस के लोथड़ों को हवा में उड़ाने का जिम्मा लिया था
सब डरने लगते हैं सत्य के शब्दों से कि पता नही कौन कब उगल दें।

जिस्म के बाजार में जिस मासूम का दाम लगाया गया था
तब उसकी याददाश्त चली गई थी
उसको बेचने वालों को सुकून मिला था, कि सारे सबूत खत्म हैं
लेकिन दो साल बाद उसकी याददाश्त वापस आ गई है
अब वो मासूम समझदार भी हो गई है
लेकिन उसको बेचने वाले डरने लगे हैं उसके मुंह खोलने से।

खलबली है खलबली.......

Wednesday, August 15, 2007

60 साल की स्वतंत्रता

पी के गायेंगे आजादी के गाने
जवानी के जोश में आज कुछ मेरे दोस्तो ने मुझे ये मैसेज किया है।
आज उन सब की छुट्टी है, कोई आईटी सेक्टर में है, तो कोई बिजनेस करता है
सबके सब आज फुरसत में हैं,
सबके सब पी कर मनाना चाहते हैं
आज 60 साल की स्वतंत्रता
आजादी के दीवानों ने 60-70 साल पहले
सूखते हलक, से दिया था आजादी का नारा
हम आजाद हुए, इतने आजाद कि दारु से तर करते हैं अपने गले को
और ब्रांडेड शराब की बोतलों के साथ मनाते हैं. आजादी का जश्न।
दो दिन पहले से ही खरीद कर रख ली गई हैं शराब की बोतलें।
अब ये रोज के मानसिक दबाव को सुकून देने का जश्न होगा
या एक दिन की आजादी का जश्न
या 60 साल की स्वतंत्रता का जश्न।

Monday, August 13, 2007

मरने के बाद.....

वो एक चैनल की रिपोर्टर थी
वो मर गई,
रिपोर्टिंग करने दौरान वो एक दुर्घटना में मरी
लोगों ने उसे शहीद बना दिया।
वो लोग जो कल तक
उस महिला रिपोर्टर के बारे में अश्लील बातें करके थे
हलक में दारु डालने के बाद, उसकी निजी जिंदगी में झांकते थे।
आज उन्हीं लोगों को मैंने उस शहीद को श्रद्धांजली देते सुना है।
वो जिंदा थी तो लोगों की नजर में वो आवारा थी
मर गई तो उन्हीं लोगों की नजर में वो बेचारी थी।
उसके मरने की खबर आते ही रात को 9.30 बजे
उसके जानने वाले और उसके बारे में जानने वालों ने
बीवी का बिस्तर छोड़कर, लोगों को फोन पर बताया था
कि यार वो मर गई। फोन पर उसके मरने की बातें
हंसते हंसते बताई गई थी।
लोगों ने अपने सारे जरुरी काम छोड़कर
इस आकस्मिक दुर्घटना को तवज्जों दिया था।
लोगों ने ये भी कहा था, वो जैसी थी उसे वैसी ही मौत नसीब हुई
लेकिन वो जैसी भी थी, मेरी तरफ से उसको श्रद्धांजली।
मरने के बाद वैसे सभी लोग अच्छे हो जाते हैं।

बजाते रहो....

जवाब की होड़ में एक दूसरे की बजाते रहो

एक दफ्तर है, अलग- अलग डेस्क हैं
एसाइनमेंट डेस्क,एडीटोरियल डेस्क,कापीराइटर डेस्क
सब की एक दूसरे से ठनी रहती हैं
कब किस पर कौन चढ़ बैठे
डायरेक्ट एक दूसरे का नाम लेकर कोई पंगा नही लेता
सब ने एक दूसरे का रोमांटिक नाम रख रखा है,
मुझे पता है लेकिन लिखूंगा नही, लोग नाराज हो जाते हैं।
कोने में बैठकर,फुरसत में सब एक दूसरे की
बजाते रहते हैं,बातों बातों में ही बजाते रहते हैं।
इस ऑफिस में इधर एक तब्दीली आई है
पहले इन लोगों की बॉस बजाते थे
अब ये आपस में एक दूसरे की बजाते रहते हैं।

एक प्रदेश है,
एक सरकार है,
सरकार चलाती हैं मायावती
मायावी मायावती,
जब जब उनकी सरकार आती है
वो भी अपने विपक्षियों की बजाती रहती है
शायद वो बजाने के लिए ही मुख्यमंत्री बनती हैं।

अब तो ब्लॉग पर बजाने वालों की कमी नही है
अब इनका परिवार ब्लॉग पर
बिना किसी परिवार नियोजन की व्यवस्था के बढ़ता जा रहा है।
सब एक दूसरे की बजाने पर तुले हैं
कुछ लोगों ने तो कुछ साहित्यकारों, कवियों, चिट्ठाकारों की
बजाने के लिए ही ब्लॉग बनाया है
और जब जब मौका मिला है, लोगों की बजाया है।
बजाते रहों.....RED FM 93.5

पेट में कब्रिस्तान

इस पापी पेट में जो भी जाता है, दफ्न हो जाता है
मुर्गे, बकरे और न जाने क्या क्या

झोपड़ों की उस बस्ती में जब आग लगी थी
जब सब कुछ जल गया था,
मासूम से चेहरे तब्दील हो गये थे मांस के लोथड़े में
कितनी गर्भवती महिलाओं के पेट में ही दफ्न हो गयी थी अजन्मी औलाद
तब भी कई पेट कब्रिस्तान बन गये थे।

कल ही मेरे मोहल्ले में एक नाबालिक लड़की ने आत्म हत्या की थी
कारण था वो बिन ब्याही मां बन गई थी,
बदनामी के डर से उसने भी पेट को कब्रिस्तान बना डाला

सियासत के चौराहे पर
जब जलाया गयी थी एक मसाल
जिसमें कसम खायी थी देश के दुश्मनों ने
कि वो किसी को चैन से जीने नही देगें
तब से आज तक होते रहे हैं बम के धमाके और
हवा में उड़ते रहे हैं पूरे के पूरे जिस्म टुकड़ो में तब्दील होकर
जिनका नाम और पता आज तक उनके घर वालों को नही मिला
क्योंकि सियासत के पहरेदारों के पेट में भी है एक कब्रिस्तान
जहां दफ्न हो जाते है खूनी सियासत के सारे सबूत।

Friday, August 10, 2007

चैनल का चौराहा

दस बजते ही उस चौराहे पर
जमा होने लगती है भीड़
सुबह ऐसे स्ट्रगलर की
जो बनना चाहते हैं इलेक्ट्रानिक मीडिया के जर्नलिस्ट और
रात को दारु पीने के लिए ऐसे नौकरी पेशा लोगों की
जो इलेक्ट्रानिक मीडिया के जर्नलिस्ट बन चुके हैं
सुबह चाय की चुस्की और रात को किसी के नाम जाम
गजब है चैनल का चौराहा
दिन में भी गुलजार
रात में भी गुलजार
एक चाय और एक सिगरेट के कश से
इस चौराहे पर किसी भी सनसनीखेज खबर की
पंच लाइन, प्रोमो और स्टिंग बनते हैं जो
पूरे देश में सनसनी फैला देते हैं।
लेकिन ये चौराहा रहता है जस का तस
आज कल इस चौराहे पर चैनल के बॉस भी बैठकी लगाते है
कई चैनल के बॉस एक साथ, एक दूसरे का दुख बांटने
या फिर अपने नीचे काम करने वाले लोगों की खबर लेने के लिए
चाय वाला अक्सर बॉस लोगों को गाली देता होगा
क्योंकि उसका धंधा चौपट हो जाता है, ग्राहक कम हो जाते हैं।
सुना है चैनल के इस चौराहे पर
आज कल खुफिया विभाग की नजर है
क्योंकि वहां अब दलाल भी इकट्ठा होते हैं।

Monday, August 6, 2007

एक गोरिया थी...

मेरे गांव में एक गोरिया थी.....
नाम था उसका सावित्री....
चेहरे से गोरी गोरी थी....
इस लिए लोग उसे गोरिया कहने लगे थे..
लम्बी थी सुन्दर थी..

एक साल पहले ही वो नई नवेली दुल्हन बन कर आई थी
गांव में वो औरतों के बीच चर्चा का विषय थी...
एक गरीब घर में ब्याह कर आई थी।
धीरे धीरे वो गांव के लौडों की भी नजर में बस गई थी
जिस घर में वो ब्याह कर आई थी...
ठीक उसी घर के सामने पुराने जमाने के जमींदार कहे जाने वाले
लड़को का घर भी था।
अब उनके घर के जवान लड़को की नजर गोरिया पर थी
गोरिया का पति समझ रहा था कि उसकी बीबी
पर अब जमीदारों की नजर पड़ गई है
वो अपनी बीवी को घर से निकलने नही देता था
लेकिन एक कमरे के घर में छिपा भी नही पाता था
और एक दिन गोरिया के पति की लाश गांव के बाहर बने एक कुएं में मिली
गोरिया अब घर में अकेली थी....साथ में उसकी बूढ़ी सास भी थी न के बराबर
गोरिया अब गांव दारी से भी वास्ता रखने लगी थी
अब उसके सिर से घूंघट हट गया था.....पान भी खाने लगी थी
गांव के लौडो के साथ अब उसे गुटखा खाते
नौरंगी लाल की दुकान पर लोग देखने लगे थे
वो अक्सर गांव की औरतों के साथ चौरा करते देखी जाती
लेकिन घर के बाहर।
गोरिया को घर के अंदर लाने से सब डरती थी..शायद बदनामी
गोरिया के होठों पे लिपिस्टिक का रंग गहरा हो गया था
गांव की औरतें अब उसे छिनाल कहने लगी थी
गांव के लौडे रात का इंतजार करते थे
एक दिन गांव में कानाफूसी थी कि गोरिया कल फलाने के साथ पकड़ी गई
दूसरे दिन गोरिया की लाश पास के तालाब के पास पड़ी थी
रात में गांव के लोगों ने गोली की आवाज....और
गोरियां की चीख भी सुनी थी।

Friday, August 3, 2007

रिपोर्टर का डर.......

वो रिपोर्टर है, एक न्यूज चैनल में
लेकिन डरती है...
उसे डर लग रहा है,
ऐसे बॉस से जिसके बारे में तमाम तरह की बातें
मीडिया के परिवार में फैलती रहती हैं..
सब कहते हैं वो तो बहुत बड़ा चमड़ी बाज है
वो रिपोर्टर ऐसे ठिकाने की तलाश में है
जहां का माहौल थोड़ा ठीक हो...
लेकिन उसे ये बात नामुमकिन लगती है..
शायद वो कुछ दिनों बाद इस खबरों की दुनिया को छोड़ दे
या फिर इस दुनिया दारी से समझौता कर ले....

Thursday, August 2, 2007

जस का तस......

सात साल बाद जब मै अपने कालेज के हॉस्टल गया तो
सब कुछ जस का तस था........सिर्फ चेहरे नये थे
दरवाजे पर टूटे शीशे से आने वाली रोशनी को रोकने के लिए
अजंता की पेटिंग जो मैंने लगाई थी.
वो अभी भी लगी थी, सिर्फ वो धुधली हो गई थी
लेकिन रोशनी अभी भी वहां से नही आ रही थी
लगता है इसी लिए उसे हटाया नही गया...

कालेज की दीवारों पर जो नाम लिखे थे और जो स्केच मैंने बनाये थे
वो भी मैंने देखा, वो भी जस के तस थे
हां उसके बगल में कुछ नाम और लिख दिए गये थे
किसी की याद में
पढ़ कर,मेरी भी कुछ यादें ताजा हो गई थी..
लेकिन सब कुछ जस का तस था।

चौराहे की चाय की दुकान पर
वो लोग जो दिन भर बैठकी लगाते थे
वो सब वही पर मुझे दिखे,
हां उन पुराने चेहरे में कुछ नये चेहरे भी थे
कुछ बदला था तो चाय की दुकान की बनावट
जिसमें बरसाती पन्नी की जगह टिन थी
लेकिन बाकी सबकुछ जस का तस था।

मुझे एहसास हो रहा था...मैं सोच रहा था....
शायद दुनिया ठहर गयी है।

Monday, July 30, 2007

इंटर्न.......

उसने जर्नलिस्ट बनने की पढ़ाई की थी....
एक तेज तर्रार जर्नलिस्ट.............
साल भर सिर खपाने के बाद
पत्रकारों के दायित्व की ढेर सारी बातें जेहन में पाल कर
वो एक न्यूज चैनल में इंटर्नशिप करने आई थी
देखने में भी वो सुन्दर थी.......एंकर माफिक
पहला दिन था, खबरों के घर में
कई नजरें कनखियों से तो कई नजरें उसको ताक रही थी
कुछ घूर भी रही थी.....
लेकिन वो सोच रही थी, इन लोगो ने तो मुझे पहले देखा भी नही..
तो फिर इतने ध्यान से मुझे क्यों देख रहे हैं
कुछ लोग उसके बारे में बात भी कर रहे थे
उसने सुना था, कोई कह रहा था लखनऊ से आई है....नवाबों के शहर से
वो कहने का मतलब समझ रही थी....
थोड़ा वो सकुचा गई थी....
एक हफ्ते बीत चुके तो
अब वो असल की खबर और खबरिया लोगो से थोड़ा मिल जुल गई थी...
लोग पास के चौराहे पर उसे चाय भी पिलाने ले जाने लगे
पद्रह दिन बाद......ऑफिस में उसी की चर्चा थी
जो भी उसके साथ चाय पी कर आता था
चार लोगो से बताता था
अब वो देर रात तक ऑफिस में रुकने लगी थी
इंटर्नशिप खत्म होने के दो चार दिन पहले मैंने देखा था
वो एक मोस्ट सीनियर, बॉस टाइप आदमी के साथ सुट्टा मार रही थी....
शायद उसकी............???

Wednesday, July 25, 2007

छोटा सा LOVE....

उसने उसको एक टीवी सीरियल में देखा था
फिर उसने उस कलाकार को एक खत लिखा....
तुम मुझे बहुत प्यारे लगते हो।
I LOVE YOU....
I LOVE YOU....
I LOVE YOU...
मैं बहुत अच्छी लगती हूं...मेरी मां बोलती है
मैं तुम्हें कैसी लगती हूं...
मैं भी पागल हूं तुमने तो मुझे देखा ही नही
चैनल वालों से कई बार मैंने तुम्हारा फोन नंबर मांगा..
उन्होंने दिया ही नही, बहुत गंदे होते हैं टीवी चैनल वाले।
चैनल वाले बोलते हैं, तुम नहा रहे हो, तुम खेलने गये हो
मैं जानती हूं कि वो लोग मुझसे झूठ बोलते है,
लेकिन मैं कोशिश करती रहती हूं की शायद कभी कोई तुम्हारा फोन नंबर दे दे।
फिर मैं अपना नाम तुम्हारें जुबान से सुनूं।
मेरा नाम मिनी है मैं क्लास 6 में पढ़ती हूं।
अच्छा अब मैं लिखना बंद कर रही हूं, शायद मम्मी आ रही है....

Tuesday, July 24, 2007

मां की चिट्ठी.....

मां की चिट्ठी आई है..
साल भर से ज्यादा हो गये
तुम घर नही आये।

पिछले साल दीवाली पर जो लड्डू बनाये थे
तुम्हारें हिस्से के, अभी तक रखे हैं।
घर की, गांव की वो सारे किस्से भी रखे है
जो तुम्हें सुनाने के लिए रखे हैं. पर तुम आये ही नही

तुम्हारे पिता जी रोज मुझे समझाते हैं, बताते हैं कि
तुम बहुत बिजी रहते हो...पता नहीं..
उनसे चुरा कर तुम्हें लिख रही हूं...
बेटा समय निकाल के आ जाओ
तुम्हारी मां अब बूढ़ी हो चुकी है
जाने कब मर जाए...
सांसे हुई पराई हैं....

मेरी छोड़ो, तुम कैसे हो, खाना समय से खाते हो
स्वास्थय पे ध्यान देना।
अब नहीं लिखूंगी, आंखे मेरी भर आई हैं...
मां की चिट्ठी आई है.....

Saturday, July 14, 2007

आई- टॉनिक

1-ऑफिस के किसी कोने में बैठकर
चुपके चुपके से इस टॉनिक का सेवन करते लोगो को आप अक्सर देंख सकते हैं।
2-अक्सर बॉस टाइप लोग चलते फिरते इस टॉनिक का सेवन कर लेते हैं।
3-1-2 के बीच का समय यानि लंच के टाइम लोग अक्सर खाना खाने के बजाय इसी टॉनिक का सेवन करके तरो-ताजा महसूस करते हैं।
4-गाड़ी चलाते चलाते भी अक्सर इस टॉनिक का सेवन किया जा सकता है। इसी के चक्कर में अक्सर एक्सीडेंट भी हो जाता है। कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है।
5-अक्सर बस पर लोग इसी लिए यात्रा करते हैं। वहां पर इस टॉनिक को लेने के साथ वो महसूस भी करते हैं।
6-बस अड्डे पर ये टॉनिक और सामानों के साथ खूब मिलता है।
नोट- अब तो आप समझ ही गये होगे कि ये और कहां कहां मिलता होगा। लो भईयां फ्री में ही तो मिलता है लेकिन संभल के।

Thursday, July 12, 2007

ऑरकुट पे बॉस....

बॉस ऑरकुट पर हैं
इस खबर ने लोगों की नींद उड़ा दी है
ऑफिस के लोग सदमें में हैं
डर ऐसा जैसे....
बॉस ऑफिस के साथ-साथ अब
बेडरुम में भी झांक रहें हैं।
लोगों ने अपने बहुत से स्क्रेप की लाइनें
जो बड़ी हिम्मत के बाद लिखी थी जिसमें
बॉस शब्द का इस्तेमाल किया था मिटाना शुरु कर दिया है।
लेकिन डर ये जरुर है कि शायद...
बॉस ने वो सब कुछ पढ़ लिया है जो
बॉस की नजरों तक नही जाना चाहिए था।
जिन लोगो ने आज तक केवल ऑरकुट पर हाल खबर ली थी
उन लोगों ने फोन करके बताया है...
बॉश ऑरकुट पर हैं!
खबर आई है बॉस खुश हैं

Tuesday, July 10, 2007

चौकें मत............

ऑपरेशन कामसूत्र
पानी में सुहागरात
एड्स पीड़ित महिला से सामूहिक बलात्कार
टाइम पास आशिक
मस्जिद में बलात्कार
भगवान हुए शर्मसार
खाक हुआ बाजार एक्सक्लूसिव
लाइव आत्म हत्या
तीन साल का मुजरिम
करोड़पति भिखारी
चौकें मत जनाब.....ये खबरें हैं

Tuesday, July 3, 2007

बारिश-1

बादलों की गड़गड़ाहट के साथ
मानसून की धमक
धमक उन दिलों पर
जो देख चुके हैं
बारिश में बहती
अपनी गृहस्थी
जिसे जोड़ा था
घर में कितनी पंचायत के बाद
जिसके लिए उसने
छानमारी थी
बाजार की हर दुकान
जांच परख के
खरीदा था हर सामान
और अब फिर वो डर रही है
देख रही मानसून की शुरुआत के साथ
पानी की हर बूंद में
बहती अपनी गृहस्थी।

Tuesday, June 12, 2007

कफ़न वस्त्रालय

एक आदमी ने
बाजार के बीच चौराहे पर
एक दुकान खुलवाया
दुकान का खूब प्रचार प्रसार करवाया
और दुकान का नाम कफ़न वस्त्रालय रखवाया।

उसने बताया
मेरी दुकान में हर किस्म के कफ़न मिलते हैं
जिंदा एवं मरे दोनो जिस्म के कफ़न मिलते हैं
यहां गरीबों के भी कफ़न हैं
अमीरों के भी कफ़न है
लेकिन दाम और क्वालिटी में फर्क है
गरीबों का कफ़न छोटा और कम अर्ज है
अमीरों का कफ़न थोड़ा बड़ा होगा
रेशमी और सितारों से जड़ा होगा
हमारी दुकान का कफन हर किस्म हर दाम वाला है
और मेरा नाम कफन वस्त्रालय वाला है।

यहां नेताओं का कफन है
अभिनेताओं का कफन है
नेताओं का कफन काला है
अभिनेताओं का कफन अनेक रंग वाला है
और जो नेता अभिनेता दोनो हैं
उनका कफन ज्यादा दाम वाला है
क्योंकि उसमें जड़ी हैं मोतियां कढ़े हैं सितारे
और चारो तरफ लगी सजीली माला है
आओ एडवांस में ले जाओं कफन
मौत का नही भरोसा आज कल
आज कल उसका बोलबाला है
मेरा नाम कफन वस्त्रालय वाला है।

यहां साधारण एवं मार्डन
दोनों प्रकार की लड़कियों के कफन मिलते हैं
साधारण लड़कियों का कफन सफेद कपड़ा है
मार्डन लड़कियों का कफन जींस तगड़ा है
मेरे यहां ऊंची दुकान फीका पकवान नही है
मेरी दुकान में घटियां सामान नही है
मेरी दुकान का काम आला है
इसी लिए मेरा नाम कफन वस्त्रालय वाला है।

वेदों ने बताया है, पुराणों ने समझाया है
गीता ने उपदेश में सुनाया है
यदि तुमने जन्म लिया है तो मरण होगा
इस जीवात्मा का हरण होगा
तुम मरोगे, जरुर मरोगे
तुम्हारा शरीर दफन होगा
तब तुम्हारें पास न तो धन होगा न ही धर्म
सिर्फ तुम्हारे पास होगा दो गज या एक गज कफन
मेरा व्यापारिक सिद्धांत निराला है
इसी लिए मेरा नाम कफन वस्त्रालय वाला है।

इस इस्तहार को पढ़कर एक व्यक्ति झल्लाया
उसने दुकानदार से पूछा भाया
तुमने ये कफन की ही दुकान क्यो खुलवाया
तब दुकानदार ने उसको समझाया
देखो भाया
आज तो मौत हर जगह खड़ी है
जहां खड़ी है, वहां लाश पड़ी है
कुछ कटी है, कुछ सड़ी है
हर व्यक्ति को मौत देने की चाह बढ़ी है
इन्हीं बातों को मेरी व्यापारिक बुद्धि ने तड़ी है
इसी लिए ये धंधा मैंने चलाया है
और अपनी दुकान का नाम
कफन वस्त्रालय रखवाया है।

Thursday, June 7, 2007

दुश्मन मां.....

मां
तुम जब फोन पर
भरे गले से पूछती हो
कैसे हो बेटा
हजारों किलोमीटर दूर मैं बैठा
बरबस बोल देता हूं
ठीक हूं, ठीक हूं...सहमा सहमा सा।

सुबह बात होती है
तो मां पूंछती है...नाश्ता किया
दोपहर में बात होती है तो...खाना खाया या नहीं
शाम को ......खाना कब खाते हो
पर मां को मैं नही बताता...
कि नाश्ता करने को टाइम नही मिलता
और आफिस की कैंटीन का खाना अच्छा नही लगता.

मुझे याद है, जब मैं पिछले साल
गांव गया था,
मां चार टाइम चाय के लिए पूछती थी
उसे लगता था बेटा शहर से आया है
शायद मां को इस बात का पता नही था कि
शहर में रहने वाले अब क्या क्या पीने लगे हैं।

फोन पर अक्सर मैं
मां से पूछता हूं
घर के क्या हाल हैं
अरे बेटा..... मां कुछ देर के लिए चुप हो जाती है
और जब बोलती है, तो सिर्फ पूछती है
अपनी बताओ कैसे हो
मुझे लगता है
वो घर का सारा कोहराम
छुपा जाती है मुझसे।

अरे अभी कल की तो बात है
मैं अपने पिता जी से बात कर रहा था
वो घर का सारा कोहराम मुझे बता रहे थे
मेरी जिम्मेवारियों को बता रहे थे
तभी पीछे से मां की आवाज आई
अरे वो तो इतना दूर हमसे बैठा है
उसे क्यों टेंशन दे रहे हो,
इस बात पर मां को
पिता जी से डांट भी मिली थी।

मां तो ऐसी ही होती है

लेकिन आज जब मेरे पास
एक स्टोरी आई
जिसमें मां ने अपने बेटे का कत्ल किया था
तो मैंने स्टोरी को नाम दिया...
दुश्मन मां......तो मुझे एहसास हुआ

मां ऐसी भी होती है।
...पुरक़ैफ़

Saturday, May 12, 2007

गवाही दे.....

सच लिखेगा, सच कहेगा
दे गवाही तू...

राम की सीता लिखेगा
कृष्ण की राधा लिखेगा
कोठे की गाथा लिखेगा
दे गवाही तू...

हार भी अपनी लिखेगा
जीत भी अपनी लिखेगा
जब गिरा है, जब उठा है
सब लिखेगा
दे गवाही तू....

बचपनें का प्यार लिख तू
प्यार का इजहार लिख तू
प्यार में टकरार लिख तू
प्यार में धोखा दिया है
प्यार ने धोखा दिया है
क्यों दिया है
दे गवाही तू...

हद....

सुलगता देश
सुलगते शहर
सुलगते गांव
सुलगते घर
सुलगता परिवार
सुलगते लोग
सुलगते अरमान
सुलगती सांसे
सुलगते एहसास
सुलगते दिन
सुलगती रातें
सुलगते सपनें.....
फिर भी हम जिंदा रहना चाहते हैं...
जिंदा रहने की हद तक.........

दलाल......

जिसको देखो वही दलाल हो गया
अब ये तो हमारे देश का हाल हो गया
इसी लिए हमारा देश बकरे की तरह हलाल हो गया

मंदिर में मधुशाला है
मस्जिद में वेश्याला है
गुरूद्वारे में जाम है, प्याला है
हर जगह दलाली है
सिर्फ दलालों का बोलबाला है
धर्म कर्म सब काला है
कैसा ये मानव साला है
जो करता है ब्रम्हचर्य धर्म का पालन
उसके बिस्तर पर बाला है
इन सब कुरितियों को
सिर्फ दलालों ने पाला है
इसी लिए हवाला है
इसी लिए घोटाला है
अब ये तो हमारे देश का हाल हो गया
इसी लिए हमारा देश बकरे की तरह हलाल हो गया।

रोज एक नयी सांस बिस्तर पर घुटती है
रोज कोई मां, कोई बहन सरेआम लुटती है
रोज किसी नाबालिग को बालिग बनाया जाता है
उसकी चीखो के साथ जश्न मनाया जाता है
रोज कोई नारी बेपर्द हो जाती है
उसकी नंगी देह सर्द हो जाती है
क्योंकि पूर्ण मानव काम का काल हो गया
अब ये तो हमारे देश का हाल हो गया
इसी लिए हमारा देश बकरे की तरह हलाल हो गया।

दलालों ने दलाली ली आतंक फैलाया
आग लगाया, घर जलाया
कितनों को अपंग किया
कितनों को मौत की नींद सुलाया
बदले में पैसा पाया
इसी मौत की दलाली से दलाल मालामाल हो गया
और हमारा देश बकरे की तरह हलाल हो गया।
पुरक़ैफ़

Thursday, May 10, 2007

घुटन....

देर रात थके हारे पांव
जब फैलते हैं बिस्तर पर तो
घुटन होती है....

भोर होने तक
जब जागती रहती हैं आंखे
इस सोच में कि...
कल क्या होगा तो
घुटन होती है....

अकेले दिन बिताने के बाद
रात के इंतजार में
बिस्तर को ताकती
एक सुकुमार देह
सो जाती है
एक छुअन बगैर तो
घुटन होती है...

अनगढ़े से शब्द
जब सुनायी पड़ते हैं
और आंखो के सामने
बनता है एक बिम्ब
जैसे एक अतुकान्त कविता तो
घुटन होती है...

आइसक्रीम की एक डंडी
जब जमीन से उठाकर
चाटता है एक बच्चा
जिसे एक बच्चे ने फेंका था
अपने डैडी के कहने पर तो
घुटन होती है...

पुरक़ैफ़

Tuesday, May 8, 2007

एक बाप की मौत......

झोपड़ी में झोपड़ी बस जोड़ता वो मर गया,
झोपड़ी में खोपड़ी बस फोड़ता वो मर गया।

सत्य का था वो पुजारी और अहिंसा धर्म था,
प्यास कुछ ऐसी लगी जल खोजता वो मर गया।

घर में चूल्हे जल रहे थे पर अलग थे लोग सब,
क्यों अलग हैं लोग सब ये सोचता वो मर गया।

एक बगिया भी लगाई थे बड़े उत्साह से,
एक महकते फूल को बस खोजता वो मर गया।

घर में उसने खिड़कियां भी बनाई थी मगर,
कुछ घुटन ऐसी हुई सर नोचता वो मर गया।

जब मरा तो लोग कहते थे बड़ा वो नेक था,
कुछ थे अपने कह रहे थे बोझ था वो मर गया।

पुरक़ैफ़

Saturday, April 28, 2007

खुदा

रास्ते में आज पड़े थे भगवान
कुछ मैले थे कुचैले थे,
पैरों के उन पर दिख रहे थे निशान
हाय कैसे हैं ये लोग,
जो अपने घरों में टांगते हैं
भगवान की तस्वीर
करते हैं पूजा, जलाते हैं सुगंधित अगरबत्तियां
और जब करते हैं घर की सफाई
तो सड़क पर फेंके जाते हैं भगवान
फिर पैरों से कुचले जाते हैं भगवान।
... पुरकैफ

धड़कनें-1

धड़कनों के लिए गीत गाता हूं मैं
धड़कनें गीत बन जाएं तो क्या करुं।

हैं जवानी के दिन दिल में तूफान है
गीत खुद गुनगुनाएं तो मैं क्या करुं।

उनकी भी ख्वाहिशें अब जवां हो रही
हुस्न खुद अब बुलाये तो मैं क्या करुं।

मन की अपनी उड़ानें नहीं थम रही
कोई आंचल उड़ाये तो मैं क्या करुं।

हर कदम पर मेरे हुस्न की आग है
खुद ब खुद पांव जल जाए तो क्या करुं।

... पुरकैफ

Friday, April 13, 2007

ऐ लड़कियों...

ऐ लड़कियों....
फतवा जारी होगा अब तुम्हारी सूरत पर, सीरत पर
हर कदम उठाने होगें तुम्हें पोर की गिनतियों पर
बोलने से पहले सोचना होगा
सोचने से पहले लेनी होगी इजाजत
समाज के ठेकेदारों से
सड़क के पहरेदारों से
क्योंकि वो चाहते हैं
तुम रहो घूंघट में
तुम रहो बुडके में
तुम काम करो सिर्फ पर्दे के पीछे
तुम काम करो करो सिर्फ बिस्तर के नीचे।

..पुरकैफ

Friday, February 23, 2007

मेरी नजर में मैं

खुद पर कुछ सोचूं ...इससे पहले....