Tuesday, October 30, 2007

एक पैर का नाच

शहर के बीच चौराहे की फुटपाथ पर जमा थी भीड़
चल रहा था एक पैर का नाच
लोग टकटकी लगाये देख रहे थे उस सोलह साल की लड़की को
जो फिल्मी धुन पर दिखा रही थी एक पैर का नाच
नाच का ये तमाशा दिखा रही लड़की बहुत सुन्दर थी
किसी गांव की गोरी की तरह
घुंघरुओं की छनक के साथ धड़क रहा था वहां पर खड़े कितने नौजवानों का दिल
जिनकी नजर पैरों पर कम....उसके गदराये जिस्म पर टिकी थी
एक पैर के इस नाच पर खूब वाहवाही भी मिल रही थी और तालियां भी बज रही थी
बीच बीच में आवाज भी आ रही थी.. जियो छम्मक छल्लो...
पूरे एक घंटे बाद नाच बंद हो गया
कितने लोगों के हाथ अपने अपने जेब में गये
जिनकी जेब से सिक्के निकले उन्होंने जमीन पर बिछे कपड़े पर उछाल दिए
जिनकी जेब से नोट निकली वो कुछ सोचने के बाद आगे बढ़ गये।
सब लोगों के जाने तक मैं वहां खड़ा रहा
मैंने उस लड़की से पूछा तुम्हारा पैर कैसे कट गया
उस लड़की की आंखे नम हो गई थी
उसने मेरी तरफ देखा
कुछ देर बाद बोली
एक ट्रेन एक्सीडेंट में मेरे मां बाप मर गये है और मेरा पैर कट गया था
वो रोने लगी थी....ढाढस के दो शब्द मैंने भी बोले थे
तीन दिन बाद मैंने शहर के दूसरे चौराहे पर भी एक पैर का नाच होते देखा था।

Tuesday, October 2, 2007

मुर्दे की ख्वाहिश

शहर की भीड़ भाड़ वाली सड़क पर
जा रही थी ठेले पर एक लाश
साथ में चल रहा था सैकड़ों लोंगों का हुजूम
राम नाम सत्य है के लग रहे थे नारे
सफेद कपड़े में सजे धजे थे सारे लोग
फूलों से लदी लाश और ठेला
बढ़ता जा रहा था.
सड़क पर चलने वाला हर शख्स
जो भी जनाजे नुमा ठेले के पास से गुजरा
उसका सिर सजदे के लिए जरूर झुका
मैं भी उस ठेले के पास से गुजरा
मैंने भी सजदा किया
और अचानक एक सवाल मेरे जेहन में आया
कि इस जनाजे के साथ सैकड़ों लोंग चल रहे हैं
लेकिन चार ऐसे कंधे नही हैं जो मुर्दे को कब्र तक ले जा सके
क्योंकि मरने के बाद हर मुर्दे की यही ख्वाहिश होती है चार कंधों की।