Monday, June 30, 2008

सावन के महीने में...

गोरी इतराती है
खूब बलखाती है
झूलों की पेंग संग
झूम झूम जाती है
सावन के महीने में।

मायका महकाई है
सुसरे से आई है
वो नवेली दुल्हन
जो मेंहदी रचवाईं है
साथ में भौजाई है
सावन के महीने में।

बदरों की बेला है
पानी का रेला है
झप झप का खेला है
सावन का मेला है
बजती पिपिहरी में
लोगों का रेला है
सावन के महीने में।

Saturday, June 28, 2008

तुम गजल बन गई....

तुम गजल बन गई….

मीठी मीठी तन्हाईं में
घर की अपनी अंगनाई में
सपनों की इस पुरवाई में
जब तुम आई
गजल बन गई

रेत के कोरे कागज पर
प्यार उकेरें पांव तेरे
थकी दोपहरी
भीगी रात में
जब तुम आई
गजल बन गई।

बोल पड़े जब होंठ तुम्हारे
सोन चिरईयां जैसी तुम
खुली तेरी चब दो दो चोटी
घिरे बादलों जैसी तुम
बारिश बन कर जब तुम आई
गजल बन गई।

Friday, June 27, 2008

नदिया कहे.....

नदिया कहे मोरे साजन का घर किस पार
बहती जाउं एक दिशा में कहा है मोरा घर - बार

जागू नो सोऊ, न मैं रोऊ
शरम से पानी पानी न होऊ
सजना का मिला न संसार
कहा है मोरा घर - बार
नदिया कहे.....

संग न खेले मोरे सहेली
कोई करे न मोसे ठिठोली
बहे नही कजरे की धार
कहा है मोरा घर – बार
नदिया कहे....

बाबुल का घर मैनें न देखा
पीहर का न लेखा जोखा
सुनी नही पायल की झनकार
कहा है मोरा – घर बार
नदिया कहे........

Wednesday, June 25, 2008

कमबख्त लेटर.....

मार्च का महीना बीतने के बाद
इंतजार रहता है इस लेटर का
हर कम्पनी के हर शख्स को।

प्रेमिका प्रेमी से पूछती है
लेटर मिला क्या ?
प्रेमी प्रेमिका से पूछता है
तुम्हे मिला क्या ?

ऑफिस में हर रोज यही चर्चा होती है
कब मिलेगा,
कोई चुपके से बात करता है
कोई जोर से बोलता है
ताकि एचआर के लोगों तक ये बात सुनाई दे।
गजब है ये लेटर...
इतनी बेसब्री तो पहले वाले प्यार के
प्रेम पत्र की भी नही रही होगी।

सच पूछो तो ये लेटर गजब होता है
इसके मिलते ही कई के बढ़ जाते है ओहदे
कुछ की बढ़ जाती है पगार
कुछ सोचते है लेटर मिलते ही
नये ठिकाने की बात
लेकिन कमबख्त एचआर वाले
जब तक हम सब ऊब नही जाते
इंतजार करना बंद नही कर देते
एक दूसरे को गाली नही देने लगते
लेटर नही आता......
भाड़ में जाए एप्रेजल और इनक्रीमेंट।

Tuesday, June 24, 2008

गली के मोड़ पर....

रोज मिलती है मुझे वो गली के मोड़ पर....

भीगी भीगी सी लगी.... बारिशों के साथ वो
सहमी सहमी सी लगी....दिन हो चाहे रात हो
सुनती रहती सिर्फ है वो....चाहे कोई बात हो
प्यासी है या प्यास उसकी बुझ चुकी...
क्या पता...?
रोज मिलती है मुझे वो गली के मोड़ पर....

दम नही है बाजुओं में..... बाह ढीली सी लगी
बोल उसके बंद से हैं........सांस ढीली सी लगी
कहना भी कुछ चाहती है...आह गीली सी लगी
और ये क्या उम्र उसकी
सिर्फ सोलह साल है?
रोज मिलती है मुझे वो गली की मोड़ पर।

कुछ लपेटे... कुछ बटोरे चुप है वो
बोलने की आस में गुमसुम है वो
देखने में वो पराई सी लगी
जिंदगी उसकी लड़ाई सी लगी
कैसी लड़ाई.......?
रोज मिलती है मुझे वो गली के मोड़ पर....



Monday, June 16, 2008

बकलोल.....

हाय, कैसी हो....
तुम फोन पर ऐसी बाते क्यों करती हो
जो मुझे पसंद नही, जो तुम्हारे लिए भी ठीक नही
प्लीजजजजजजजजजज......फोन मत रखना,
ये फोन रखने की अपनी आदत छोड़ दो....
अरे, तुम गुस्सा हो जाओ तो ठीक है, मैं गुस्सा करूं तो....
क्या यार क्या बात करती हो....
अब बोलो, कब मिल रही हो....
कल मैं बहुत बिजी हूं......नही आज नही आ सकता
फिर तुम फोन रखने की बात करने लगी, सुधर जाओ यार
प्रॉब्लम को समझा करो यार।
कल........
हां कल गुड नाइट का मैसेज करना भूल गया था
तो..... क्या यार छोटी छोटी बातो पे लड़ती हो
चलो और बताओं नौकरी कैसी चल रही है
क्यों.....नौकरी क्यो छोड़ रही हो
अरे यार अभी तो शुरूआत है थोड़ी मेहनत तो करनी ही पड़ेगी।
हां नौकरी की शुरूआत में सबको ज्यादा काम करना पड़ता है तुम कोई अकेली थोड़ी हो।
हां हां....
ओके मम्मी आ गई....ओके बॉय
मुआआआआआआआआआआआआआआ।
मेरी बकलोल।