Tuesday, September 30, 2008

प्यार की पहल...




जब आने लगे घर से गलियों में वो,
आना जाना भी अपना शुरू हो गया।
अब तलक सिर्फ तकते थे हम देखकर,
देखकर मुस्कुराना शुरू हो गया।।

वो हमें देखकर भाग जाते है क्यों ,
क्यों नही देखकर पास आते है वो
जब से एहसास होने लगा प्यार का,
घर से कोई बहाना शुरू हो गया।।

क्यो हमें देखकर भाग जाते है वो,
क्यों नही देख कर पास आते हैं वो
अब तलक सिर्फ सपनों में थे छेड़ते,
रात भर अब जगाना शुरू हो गया।।

वो कली थी अभी तक खिली थी नही
कोई भंवरे से अब तक मिली थी नही
शर्म उनका सरकने लगा इस तरह
अब दुपट्टा गिरना शुरू हो गया।।

Monday, September 15, 2008

बरसों बाद घर आया.......



मकड़ियों के जालो से बंधी किताबों की पोटली को
आज मैंने देखा धूल भरे कमरे की उन अलमारियों में।

सूरज की एक रोशनी खपड़ैले छत के सुराख से झांक रही थी
देख रही थी मुझे, या फिर कोशिश पहचानने की
जो मुझे रोज जगाती थी बरसो पहले।

दबे पांव , जाना चाहता था कमरे के भीतर
दबे हाथ, छूना चाहता था उन किताबों को
जिनके साथ जुड़ी है मेरी यादे,
जिनके बल पर मिली है मुझे कामयाबी

उन किताबों के बीच धूल से सनी रखी है मेरी वो डायरी
जिनमे दबा होगा वो गुलाब का फूल,
जिसने पहली बार कराया था मुझे किसी के प्यार का एहसास।
या ये कहूं कि मेरा पहला प्यार, दबा है उस डायरी के अंदर
जो बेचैन है बाहर निकलने को।
कितने सवाल, कितनी यादे, कितने एहसास से भरा है
ये धूल भरा कमरा।
आगे बढ़ा.......

तभी अम्मा बोली मत जाओ बहुत गंदा हो गया है कमरा अभी साफ कर दूंगी तब जाना, बहुत धूल मिट्टी वहां