
मकड़ियों के जालो से बंधी किताबों की पोटली को
आज मैंने देखा धूल भरे कमरे की उन अलमारियों में।
सूरज की एक रोशनी खपड़ैले छत के सुराख से झांक रही थी
देख रही थी मुझे, या फिर कोशिश पहचानने की
जो मुझे रोज जगाती थी बरसो पहले।
दबे पांव , जाना चाहता था कमरे के भीतर
दबे हाथ, छूना चाहता था उन किताबों को
जिनके साथ जुड़ी है मेरी यादे,
जिनके बल पर मिली है मुझे कामयाबी
उन किताबों के बीच धूल से सनी रखी है मेरी वो डायरी
जिनमे दबा होगा वो गुलाब का फूल,
जिसने पहली बार कराया था मुझे किसी के प्यार का एहसास।
या ये कहूं कि मेरा पहला प्यार, दबा है उस डायरी के अंदर
जो बेचैन है बाहर निकलने को।
कितने सवाल, कितनी यादे, कितने एहसास से भरा है
ये धूल भरा कमरा।
आगे बढ़ा.......
तभी अम्मा बोली मत जाओ बहुत गंदा हो गया है कमरा अभी साफ कर दूंगी तब जाना, बहुत धूल मिट्टी वहां
7 comments:
सही समेटा अपने अनुभवों को!! बधाई.
wah!!!! kya khub likha hai aapne.... apki kavita ka koi jawab hi nahi.....aapki in kavita mein mujhe sab sa jaya "उन किताबों के बीच धूल से सनी रखी है मेरी वो डायरी
जिनमे दबा होगा वो गुलाब का फूल,
जिसने पहली बार कराया था मुझे किसी के प्यार का एहसास।
या ये कहूं कि मेरा पहला प्यार, दबा है उस डायरी के अंदर
जो बेचैन है बाहर निकलने को।" yeh line pasand aayi....
bhai purkaif choo liya, bhed diya barson baad ghar aya theek yahi ahsas jagta hai.....
पुरकै़फ-ए-मंज़र is wrong
its wright verson is ...पुरकै़फ-मंज़र
पुरकै़फ-ए-मंज़र is wrong
shld b like this...............पुरकै़फ-मंज़र
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