Friday, December 26, 2008

अब तो बंदूक उठाओं यारो




सूरते हाल बताओ यारो,
क्या हुआ हमको दिखाओ यारों
वहां पे सिसकिया थीं रेला था
हमें भी कुछ तो सुनाओं यारों।

गुबार गम के, धुंआ आंसू से
जल रहे लोग, वहां सांसो से
सिमट के जिंदगी है सहमी सी
उसको एतबार दिलाओ यारों।

कराह, आह सब लिपट से गये
लाखों थे लोग सब सिमट से गये
सामने दरिया है, उफनता सा
कोई दो बूंद पिलाओं यारो।

घुटन की जिंदगी जिल्लत से भरी
अपने घर में ही इक मासूम डरी
शांति के गीत प्लीज बंद करो
अब तो बंदूक उठाओं यारों ।।

Tuesday, September 30, 2008

प्यार की पहल...




जब आने लगे घर से गलियों में वो,
आना जाना भी अपना शुरू हो गया।
अब तलक सिर्फ तकते थे हम देखकर,
देखकर मुस्कुराना शुरू हो गया।।

वो हमें देखकर भाग जाते है क्यों ,
क्यों नही देखकर पास आते है वो
जब से एहसास होने लगा प्यार का,
घर से कोई बहाना शुरू हो गया।।

क्यो हमें देखकर भाग जाते है वो,
क्यों नही देख कर पास आते हैं वो
अब तलक सिर्फ सपनों में थे छेड़ते,
रात भर अब जगाना शुरू हो गया।।

वो कली थी अभी तक खिली थी नही
कोई भंवरे से अब तक मिली थी नही
शर्म उनका सरकने लगा इस तरह
अब दुपट्टा गिरना शुरू हो गया।।

Monday, September 15, 2008

बरसों बाद घर आया.......



मकड़ियों के जालो से बंधी किताबों की पोटली को
आज मैंने देखा धूल भरे कमरे की उन अलमारियों में।

सूरज की एक रोशनी खपड़ैले छत के सुराख से झांक रही थी
देख रही थी मुझे, या फिर कोशिश पहचानने की
जो मुझे रोज जगाती थी बरसो पहले।

दबे पांव , जाना चाहता था कमरे के भीतर
दबे हाथ, छूना चाहता था उन किताबों को
जिनके साथ जुड़ी है मेरी यादे,
जिनके बल पर मिली है मुझे कामयाबी

उन किताबों के बीच धूल से सनी रखी है मेरी वो डायरी
जिनमे दबा होगा वो गुलाब का फूल,
जिसने पहली बार कराया था मुझे किसी के प्यार का एहसास।
या ये कहूं कि मेरा पहला प्यार, दबा है उस डायरी के अंदर
जो बेचैन है बाहर निकलने को।
कितने सवाल, कितनी यादे, कितने एहसास से भरा है
ये धूल भरा कमरा।
आगे बढ़ा.......

तभी अम्मा बोली मत जाओ बहुत गंदा हो गया है कमरा अभी साफ कर दूंगी तब जाना, बहुत धूल मिट्टी वहां

Thursday, August 28, 2008

उंगली गुरू...


मेहरबान कदरदान....
सुनाते हैं, बताते हैं
हम फरमाते हैं, दास्तान
उंगली गुरू की।

डुगडुगी की थाप के साथ
वो बजाते हैं , खबरो को
लब्बो लुआब के साथ
फरमाते हैं, खबरों को
लेकिन हर खबर पर,
हर बात पर,
उंगली जरूर करते है
उंगली गुरू।

पांव टिकते नहीं हैं तुम्हारें सनम
...........में।
की तर्ज पर,
सुबह- ए- शाम मनाते हैं
दुनिया की ऐसी तैसी.....
वाला गाना भी गुनगुनाते हैं
आओ खेले नौकरी नौकरी
वाला रियलटी शो भी वो चलाते हैं
लेकिन बड़ी बातो पर ही वो उंगली उठाते हैं
उंगली गुरू।

गुगल, गुगली और उंगली
हमारे उंगली गुरू के अस्त्र शस्त्र हैं
लेकिन जिसमें दम होता है.


उंगली वही कर सकता है
हमारे उंगली गुरू में भी
वो दम है, उनके आगे सब कम हैं।
उंगली गुरू की जय हो।
नोट- उंगली गुरू कही भी पाए जा सकते हैं,
जरूरत है आपकी पारखी नजर की।

Thursday, August 21, 2008

हथेली पर.....



तमाम टेढ़ी मेढ़ी लकीरे हैं हथेली पर.......
भविष्य को बनाती बिगाड़ती
किसी की किस्मत......
किसी का लिखा है लकीरों पर नाम.....
जो इश्क को परवाज देती हैं।
उनके हाथों में हैं मुरझायें फूल
किसी के इंतजार में..........
मुकाम की आस में दम तोड़ते

तेरी हथेली पर मेरा हाथ
गर्म सांसे.........
मोहताज चंद लम्हें की जो हमारे हो
बाजार की भीड़ में.......।

हथेली पर उगाते सपनों के फूल
इस आस में की उस पर भी आयेंगे सुगंधित फूल
सब कुछ भ्रम सा........
उलझती जिंदगी सा.....
सुलझते सवालों सा....
सब कुछ दिखता है हथेली पर..
क्या है ऐसा सब कुछ।

सचमुच हथेली पर लट्टू सी नाचती जिंदगी

Wednesday, July 9, 2008

बदनाम गली के...



कुछ तौर तरीके भी हैं बदनाम गली के
कुछ अपने सलीके भी है बदनाम गली के
तुम को उछालना है तो पत्थर उछाल दो
शीशे नही टूटेंगें बदनाम गली के।


हमको भी नजाकत की अदा खूब पता है
उनको भी अदावत की अदा खूब पता है
कुदरत की कायनात में दुश्मन भी, दोस्त भी
रिश्ते नहीं टूटेंगे बदनाम गली के।

उनकी बदनाम निगाहों में अदा खूब मिली है
हमको भी शराफत की सजा खूब मिली है
दामन में उनके अपनी सराफत है डाल दी
आंचल नही छूटेंगे बदनाम गली के।

Thursday, July 3, 2008

जिया जले.....

फोन पर बजती कई बार पूरी पूरी रिंग
फोन करने पर सुविज्ड ऑफ का संकेत
मोबाइल पर मैसेज का अनसेंड वाली खबर
जानकर, सुनकर, सचमुच.....
जिया जले.......।

रेस्टोंरेंट में एक कोने में
चेयर पर अकेले बैठे किसी का इंतजार
शहर वाले पार्क में पेड़ की छांव तले
बार बार कलाई पर बंधी घड़ी को देखना
महसूस कर, सचमुच..........
जिया जले.........।

परदेश से महीनों बाद पिया का घर आने का संदेश
साथ साथ कंगना, चूड़ी़, बिंदी पाने की खुशी
पिया के बांहो का प्यार का एहसास, सब खत्म
एक ही छड़ में, एक बैरी फोन कॉल में
पिया के न आने का संदेश सुनकर
गोरी का, सचमुच.......
जिया जले.......।

Monday, June 30, 2008

सावन के महीने में...

गोरी इतराती है
खूब बलखाती है
झूलों की पेंग संग
झूम झूम जाती है
सावन के महीने में।

मायका महकाई है
सुसरे से आई है
वो नवेली दुल्हन
जो मेंहदी रचवाईं है
साथ में भौजाई है
सावन के महीने में।

बदरों की बेला है
पानी का रेला है
झप झप का खेला है
सावन का मेला है
बजती पिपिहरी में
लोगों का रेला है
सावन के महीने में।

Saturday, June 28, 2008

तुम गजल बन गई....

तुम गजल बन गई….

मीठी मीठी तन्हाईं में
घर की अपनी अंगनाई में
सपनों की इस पुरवाई में
जब तुम आई
गजल बन गई

रेत के कोरे कागज पर
प्यार उकेरें पांव तेरे
थकी दोपहरी
भीगी रात में
जब तुम आई
गजल बन गई।

बोल पड़े जब होंठ तुम्हारे
सोन चिरईयां जैसी तुम
खुली तेरी चब दो दो चोटी
घिरे बादलों जैसी तुम
बारिश बन कर जब तुम आई
गजल बन गई।

Friday, June 27, 2008

नदिया कहे.....

नदिया कहे मोरे साजन का घर किस पार
बहती जाउं एक दिशा में कहा है मोरा घर - बार

जागू नो सोऊ, न मैं रोऊ
शरम से पानी पानी न होऊ
सजना का मिला न संसार
कहा है मोरा घर - बार
नदिया कहे.....

संग न खेले मोरे सहेली
कोई करे न मोसे ठिठोली
बहे नही कजरे की धार
कहा है मोरा घर – बार
नदिया कहे....

बाबुल का घर मैनें न देखा
पीहर का न लेखा जोखा
सुनी नही पायल की झनकार
कहा है मोरा – घर बार
नदिया कहे........

Wednesday, June 25, 2008

कमबख्त लेटर.....

मार्च का महीना बीतने के बाद
इंतजार रहता है इस लेटर का
हर कम्पनी के हर शख्स को।

प्रेमिका प्रेमी से पूछती है
लेटर मिला क्या ?
प्रेमी प्रेमिका से पूछता है
तुम्हे मिला क्या ?

ऑफिस में हर रोज यही चर्चा होती है
कब मिलेगा,
कोई चुपके से बात करता है
कोई जोर से बोलता है
ताकि एचआर के लोगों तक ये बात सुनाई दे।
गजब है ये लेटर...
इतनी बेसब्री तो पहले वाले प्यार के
प्रेम पत्र की भी नही रही होगी।

सच पूछो तो ये लेटर गजब होता है
इसके मिलते ही कई के बढ़ जाते है ओहदे
कुछ की बढ़ जाती है पगार
कुछ सोचते है लेटर मिलते ही
नये ठिकाने की बात
लेकिन कमबख्त एचआर वाले
जब तक हम सब ऊब नही जाते
इंतजार करना बंद नही कर देते
एक दूसरे को गाली नही देने लगते
लेटर नही आता......
भाड़ में जाए एप्रेजल और इनक्रीमेंट।

Tuesday, June 24, 2008

गली के मोड़ पर....

रोज मिलती है मुझे वो गली के मोड़ पर....

भीगी भीगी सी लगी.... बारिशों के साथ वो
सहमी सहमी सी लगी....दिन हो चाहे रात हो
सुनती रहती सिर्फ है वो....चाहे कोई बात हो
प्यासी है या प्यास उसकी बुझ चुकी...
क्या पता...?
रोज मिलती है मुझे वो गली के मोड़ पर....

दम नही है बाजुओं में..... बाह ढीली सी लगी
बोल उसके बंद से हैं........सांस ढीली सी लगी
कहना भी कुछ चाहती है...आह गीली सी लगी
और ये क्या उम्र उसकी
सिर्फ सोलह साल है?
रोज मिलती है मुझे वो गली की मोड़ पर।

कुछ लपेटे... कुछ बटोरे चुप है वो
बोलने की आस में गुमसुम है वो
देखने में वो पराई सी लगी
जिंदगी उसकी लड़ाई सी लगी
कैसी लड़ाई.......?
रोज मिलती है मुझे वो गली के मोड़ पर....



Monday, June 16, 2008

बकलोल.....

हाय, कैसी हो....
तुम फोन पर ऐसी बाते क्यों करती हो
जो मुझे पसंद नही, जो तुम्हारे लिए भी ठीक नही
प्लीजजजजजजजजजज......फोन मत रखना,
ये फोन रखने की अपनी आदत छोड़ दो....
अरे, तुम गुस्सा हो जाओ तो ठीक है, मैं गुस्सा करूं तो....
क्या यार क्या बात करती हो....
अब बोलो, कब मिल रही हो....
कल मैं बहुत बिजी हूं......नही आज नही आ सकता
फिर तुम फोन रखने की बात करने लगी, सुधर जाओ यार
प्रॉब्लम को समझा करो यार।
कल........
हां कल गुड नाइट का मैसेज करना भूल गया था
तो..... क्या यार छोटी छोटी बातो पे लड़ती हो
चलो और बताओं नौकरी कैसी चल रही है
क्यों.....नौकरी क्यो छोड़ रही हो
अरे यार अभी तो शुरूआत है थोड़ी मेहनत तो करनी ही पड़ेगी।
हां नौकरी की शुरूआत में सबको ज्यादा काम करना पड़ता है तुम कोई अकेली थोड़ी हो।
हां हां....
ओके मम्मी आ गई....ओके बॉय
मुआआआआआआआआआआआआआआ।
मेरी बकलोल।

Thursday, May 15, 2008

धमाके के बाद.....
















एक आंगन में दो आंगन हो जाते हैं,
राम के घर में जब भी दंगा होता है
हिंदू मुस्लिम सब रावण हो जाते हैं।





Tuesday, March 18, 2008

लाइट....फोटो प्रदर्शनी सीरीज-4

डांस ऑफ लाइट....





जर्नी ऑफ लाइट....



लाइट फ्लो......




वाटर रेनबो.....












लहरों पर रंगीनियां

Wednesday, March 12, 2008

धरोहर.. फोटो प्रदर्शनी सीरीज-3































नोट- ये सारी फोटो मैंने अपने मोबाइल फोन कैमरे से गोवा के चर्च और ओल्ड हाउस से ली है।





Monday, March 10, 2008

गांव से - मेरी फोटो प्रदर्शनी, सीरीज-2

घूंघट.......( धान की रोपाई करती गांव की महिलाएं कैमरा देखकर शरमा गईं)
मस्ती......

महुआ...(हम सबकी जड़ें ज्यादातर गांव से ही जुड़ी हैं)


एक लोटा पानी.....( खेत- खलियान में स्कूल से आने के बाद पानी ले जाती किसान की बिटिया)



सुकून......( मेरे बाग में आराम के लिए किसी किसान का बिछाया हुआ बिझौना)




बाजरा.......( ये फोटो मैंने तब क्लिक की है जब कई साल बाद अपने खेत पर गया था।)


नोट- घूंघट को छोड़कर सभी फोटो मैंने अपने मोबाइल फोन के कैमरे से क्लिक की हैं।


Sunday, March 9, 2008

मेरी फोटो प्रदर्शनी.....सीरीज-1

सूरज संग चांदनी
टर्न.......

बिग हैंड...स्माल लेग


मौजा ही मौजा.......



दम......




इंतजार.........





Monday, February 25, 2008

नंगा किनारा........





























समंदर की लहरों के साथ हवा में घुले उबटन को







गोरी चमड़ी से लपटते







दूर देश से आराम







फरमाने आये हैं परदेशी..........इन गोवा