अब तक कहावत थी कि हमाम में सब नंगे....पर आपकी तस्वीरें देखकर ये दायरा काफी बढ़ गया लगता है। रही बात ब्लॉग पर लिखी कविता में 'कुचली सरसो से आती तिलहन की महक' की तो साब ये बड़ी खांटी गंवई महक है, जो अकसर जाड़े के दिनों में खेतों में तिरती मिल जाती है। तस्वीरें अच्छी लगीं, हालांकि आपके खजाने में अभी बहुत कुछ है जो ब्लॉग पर आना बाकी है।
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अब तक कहावत थी कि हमाम में सब नंगे....पर आपकी तस्वीरें देखकर ये दायरा काफी बढ़ गया लगता है।
रही बात ब्लॉग पर लिखी कविता में 'कुचली सरसो से आती तिलहन की महक' की तो साब ये बड़ी खांटी गंवई महक है, जो अकसर जाड़े के दिनों में खेतों में तिरती मिल जाती है। तस्वीरें अच्छी लगीं, हालांकि आपके खजाने में अभी बहुत कुछ है जो ब्लॉग पर आना बाकी है।
संदीपजी ने सही ही कहा है कि हमाम सब नंगे होते है... आपकी प्रतिभा निराली है... आप इससे भी अच्छा काम कर सकते है...
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