Monday, August 6, 2007

एक गोरिया थी...

मेरे गांव में एक गोरिया थी.....
नाम था उसका सावित्री....
चेहरे से गोरी गोरी थी....
इस लिए लोग उसे गोरिया कहने लगे थे..
लम्बी थी सुन्दर थी..

एक साल पहले ही वो नई नवेली दुल्हन बन कर आई थी
गांव में वो औरतों के बीच चर्चा का विषय थी...
एक गरीब घर में ब्याह कर आई थी।
धीरे धीरे वो गांव के लौडों की भी नजर में बस गई थी
जिस घर में वो ब्याह कर आई थी...
ठीक उसी घर के सामने पुराने जमाने के जमींदार कहे जाने वाले
लड़को का घर भी था।
अब उनके घर के जवान लड़को की नजर गोरिया पर थी
गोरिया का पति समझ रहा था कि उसकी बीबी
पर अब जमीदारों की नजर पड़ गई है
वो अपनी बीवी को घर से निकलने नही देता था
लेकिन एक कमरे के घर में छिपा भी नही पाता था
और एक दिन गोरिया के पति की लाश गांव के बाहर बने एक कुएं में मिली
गोरिया अब घर में अकेली थी....साथ में उसकी बूढ़ी सास भी थी न के बराबर
गोरिया अब गांव दारी से भी वास्ता रखने लगी थी
अब उसके सिर से घूंघट हट गया था.....पान भी खाने लगी थी
गांव के लौडो के साथ अब उसे गुटखा खाते
नौरंगी लाल की दुकान पर लोग देखने लगे थे
वो अक्सर गांव की औरतों के साथ चौरा करते देखी जाती
लेकिन घर के बाहर।
गोरिया को घर के अंदर लाने से सब डरती थी..शायद बदनामी
गोरिया के होठों पे लिपिस्टिक का रंग गहरा हो गया था
गांव की औरतें अब उसे छिनाल कहने लगी थी
गांव के लौडे रात का इंतजार करते थे
एक दिन गांव में कानाफूसी थी कि गोरिया कल फलाने के साथ पकड़ी गई
दूसरे दिन गोरिया की लाश पास के तालाब के पास पड़ी थी
रात में गांव के लोगों ने गोली की आवाज....और
गोरियां की चीख भी सुनी थी।

2 comments:

Udan Tashtari said...

बड़ा स्पष्ट चित्र खींचा है जैसे कि किसी चलचित्र की कहानी.

Ashok Kaushik said...

क्यों भाई, आपकी ये गोरिया सिर्फ जिस्म थी या मुकम्मल शख्सियत? उसके पास दिल-दिमाग, जज्बात और विवेक नाम की कोई चीज थी या नहीं..? हालात के सामने गोरिया का सरेंडर निराश करता है।