इस प्रजाति की खास बातें....
रड़ुआ रिपोर्टर 8 घंटे की ड्यूटी को 12 घंटे तक करता है
क्योंकि उसे घर जाने की चिंता कम होती है।
और अपना ज्यादा से ज्यादा समय ऑफिस को देना चाहता है
ऐसे में किसी भी न्यूज सेंटर का बॉस उससे खुश रहता है।
मीडिया जगत में ऐसे लोगों का परिवार बढ़ता जा रहा है
बॉस के घर पर होने होने वाली कॉकटेल पार्टी में
ऐसे ही लोगों को बुलाया जाता है जो रणुआ हैं।
और जब चढ़ता है शुरुर तो सब एक दूसरे की खोलते हैं पोल
और बॉस खुश हो जाते हैं इन रड़ुआ रिपोर्टरों की बयान बाजी से
मसाला मिल जाता है.....दो चार दिन तक किसी न किसी की.....।
ऑफिस में आने वाली हर नयी लड़की रिपोर्टर
जज्बा पैदा करती है रड़ुआ रिपोर्टर के अंदर
होड़ लगती है उसके साथ चाय पीने के लिए
कोई हार जाता है, कोई जीत जाता है
लेकिन जो जीता वही सिंकदर
लोगों की नाक में दम करने वाले ये रिपोर्टर
इसी ....के चौखट पर आकर अक्सर खुद की खबर बना लेते हैं।
रड़ुआ रिपोर्टर दो तरह के होते हैं
एक जूनियर एक सीनियर
सीनियर अक्सर अपने जूनियर की खबर रखता है
वह नौकरी के अलावा कई मामले में उसे अपना प्रतिद्वंदी मानता है
आखिर वो ज्यादा जवान होता है भाई......
और अक्सर इसी के चक्कर में जूनियर की बेवजह लगती रहती है।
नोट-
1-रड़ुआ रिपोर्टर आजकल समाज में बदनाम होते जा रहे हैं......लोग उन्हें बेहद आवारा समझने लगे हैं. कोई अपनी बेटी उनके हवाले नही करना चाहता। इस लिए रिपोर्टर के आगे रड़ुआ शब्द हटने की उम्मीदे कम होती जा रही हैं।
2-ये सब मुझे एक रड़ुआ रिपोर्टर दोस्त ने लिखने के लिए मजबूर किया है जिसके सिर पर चांद बन गया है।
5 comments:
rajesh ji ,meri hardik echa hai ki pratham randua mahasangh ke president ka jo pad hai usko aap hi sushobhit kare...aur randauo ki sabhi samasyyo ko sune aur aawsahyak upay bhi bataye....
aap par ishawar ki kripa bani rahe aur aap randuo ke masiha ke roop me jag prasidha ho....
randuo ka klan ho....
Ustad bahut sahi likha hain..hamare desh me eshe logon ki kami nahi..
रंडुआ जी आपने खूब लिखा और विवेक ने जिस संघ बनाने की बात कही उसने आपको सही बात कही है। आप संघ जरुर बनाएं और उसके अध्यक्ष जरुर बनें। आपको जिस शख्स ने लिखने के लिए उत्साहित किया उसे महासचिव बना लें। मेरी सलाह है कि रंडुआ पत्रकार संघ के बाद ऐसी महिलाओं का भी एक संघ उनके कल्याण के लिए बना लें। ईश्वर से प्रार्थना कि आपके संघ को सफल बनाए1
मजा आया पढ कर और अन्दर की बातें और अन्दर का दर्द पता लगा.
राजेश पढकर अच्छा लगा। वाकई इन रंडुआ रिपोर्टरो की जमात बढती जा रही थी। तुम्हारा 'खास' दोस्त तो खैर इन रंडुआ रिपोर्टरो का अध्यक्ष भी बन सकता था। उसका का एक गुरु भी था--तुम अच्छी तरह जानते हो वो कौन है और कहां की मै बात कर रहा हूं--उसने ही ये प्रथा शुरु की था वहां। लेकिन दिनदिनो ये प्रजाति अब लुप्त होने के कगार पर है। जानते हो क्यो। जबसे से इस जाति के एक प्राणी ने फर्जी स्टिंग कर अपनी पूरी जाति को कलंकित कर दिया है। अब हर रिपोर्टर सिर्फ आठ घंटे ही ड्यूटी कर रहा है। वो भी या तो फील्ड में या फिर बॉस की नजरो से कोसो दूर। और जैसे ही घडी में आठ बजते है चुपके से घर निकलने की फिराक में रहता है। और इस बात का ध्यान रखता है कि ऑफिस से निकलते हुये बॉस की नजर ना पड जाये।
जबाब दो क्या इस विलुप्त होती जाति को बचाना चाहिये या फिर डायनोसर की तरह हमारे तुम्हारे ब्लॉग की शोभा बढाये।
नीरज राजपूत
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