सात साल बाद जब मै अपने कालेज के हॉस्टल गया तो
सब कुछ जस का तस था........सिर्फ चेहरे नये थे
दरवाजे पर टूटे शीशे से आने वाली रोशनी को रोकने के लिए
अजंता की पेटिंग जो मैंने लगाई थी.
वो अभी भी लगी थी, सिर्फ वो धुधली हो गई थी
लेकिन रोशनी अभी भी वहां से नही आ रही थी
लगता है इसी लिए उसे हटाया नही गया...
कालेज की दीवारों पर जो नाम लिखे थे और जो स्केच मैंने बनाये थे
वो भी मैंने देखा, वो भी जस के तस थे
हां उसके बगल में कुछ नाम और लिख दिए गये थे
किसी की याद में
पढ़ कर,मेरी भी कुछ यादें ताजा हो गई थी..
लेकिन सब कुछ जस का तस था।
चौराहे की चाय की दुकान पर
वो लोग जो दिन भर बैठकी लगाते थे
वो सब वही पर मुझे दिखे,
हां उन पुराने चेहरे में कुछ नये चेहरे भी थे
कुछ बदला था तो चाय की दुकान की बनावट
जिसमें बरसाती पन्नी की जगह टिन थी
लेकिन बाकी सबकुछ जस का तस था।
मुझे एहसास हो रहा था...मैं सोच रहा था....
शायद दुनिया ठहर गयी है।
2 comments:
kabhie kabhie sanay ka thehrao dekh kar bhi khushi milti hai..shayad aapko bhi mili hogi wo painting dekh ke !
बात बन रही है प्यारे।
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